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ऋ॒तावा॑ना॒ नि षे॑दतु॒: साम्रा॑ज्याय सु॒क्रतू॑ । धृ॒तव्र॑ता क्ष॒त्रिया॑ क्ष॒त्रमा॑शतुः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ṛtāvānā ni ṣedatuḥ sāmrājyāya sukratū | dhṛtavratā kṣatriyā kṣatram āśatuḥ ||

पद पाठ

ऋत॒ऽवा॑ना । नि । से॒द॒तुः॒ । साम्ऽरा॑ज्याय । सु॒क्रतू॒ इति॑ सु॒ऽक्रतू॑ । धृ॒तऽव्र॑ता । क्ष॒त्रिया॑ । क्ष॒त्रम् । आ॒श॒तुः॒ ॥ ८.२५.८

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:8 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:22» मन्त्र:3 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:8


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शिव शंकर शर्मा

उन दोनों का कर्त्तव्य कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः वे दोनों (ऋतावाना) ईश्वरीय सत्यनियमों पर चलनेवाले और (सुक्रतू) शोभनकर्मा (साम्राज्याय) राज्य के कल्याण के लिये (निषेदतुः) उत्तम सिंहासन पर बैठते हैं अथवा महाराष्ट्र के शासन के लिये प्रजाओं से अभिषिक्त होकर व्यवस्था करने के लिये बैठते हैं। (धृतव्रता) प्रजा के शासन के व्रत को जिन्होंने धारण किया है, (क्षत्रिया) जो क्षात्रधर्मयुक्त हों (क्षत्रम्+आशतुः) और परम बल को प्राप्त किये हुए हों ॥८॥
भावार्थभाषाः - पूर्वोक्त गुणसंयुक्त ब्राह्मण और क्षत्रिय दोनों राज्य कार्य्य के लिये चुने जायँ, तब वे इस कार्य को महाव्रत समझ सदा प्रजाहित में आसक्त रहें ॥८॥
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शिव शंकर शर्मा

तयोः कर्त्तव्यमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः। ऋतावाना=ऋतावानौ। सुक्रतू। तौ मित्रावरुणौ। साम्राज्याय। निषेदतुः=निषीदतः। धृतव्रता। क्षत्रियौ तौ। क्षत्रम्=बलम्। आशतु=बलं धत्त इत्यर्थः ॥८॥